जेरेनियम की खेती कैसे करें ? HOW TO GERANIUM CULTIVATION IN INDIA ? GERANIUM KI KHETI KAISE KARE.
हेलो फ्रेंड्स आज मै बात कर रहा हूँ , जेरेनियम की खेती के
बारे में, जेरेनियम एक औषधीय पोधा है, इसकी मूल रूप से दक्षिण अफ्रीका में खेती होती है इसकी खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में होती है। जेरेनियम के पौधे से तेल निकाला जाता है जो मेंथा के
तेल के विकल्प के रूप में प्रयोग किया जाता है इसके तेल का प्रयोग एरोमा थेरेपी, सौंदर्य प्रसाधन, स्वादगंध और दवा के क्षेत्र में होता है। इसका वैज्ञानिक नाम पिलारगोनियम ग्रेवियोलेन्स है
HOW TO PREPAIR GERANIUM SEEDLING ? जेरेनियम की पौध / नर्सरी कैसे तैयार करें
आमतौर पर जेरेनियम की पौधे से पौध तैयार की जाती है। 4 से 6 गाँठ वाली कलम काटकर मिटटी में
लगा कर पौध तैयार की जाती है, एक पौधे से 10-12 कटिंग कर नए पौधे तैयार किए जाते हैं। लेकिन, बारिश के दौरान पौध खराब हो जाती थी,
जिसके कारण किसानों को पौध सामग्री काफी महंगी पड़ती थी। सीमैप के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित जेरेनियम की खेती की इस नई तकनीक से करीब 30 रुपये की लागत में तैयार होने वाला पौधा अब सिर्फ 2.5 रुपये में तैयार किया जा सकेगा। पौध से पौध के
बीच की दूरी 40 से 50 सेंटीमीटर होती है
TIME OF GERANIUM FARMING जेरेनियम की खेती करने का समय
अक्टूबर महीने से नर्सरी तैयार करनी शुरु कर दी जाती है, जो 20 से 25 दिनों में तैयार हो जाती है वैसे तो इसकी खेती नवंबर से लेकर फरवरी तक किसी महीने में की जा सकती है लेकिन सीमैप के वैज्ञानिक फरवरी को सही समय मानते है।
WEATHER AND SOIL FOR GERANIUM जलवायु और मिट्टी
इसकी खेती के लिए हर तरह की जलवायु उपयुक्त मानी जाती है. लेकिन कम नमी वाली हल्की जलवायु अच्छी पैदावार के लिए उत्तम मानी जाती है. जिरेनियम की खेती उस क्षेत्र में की जानी चाहिए जहाँ वार्षिक जलवायु 100 से 150 सेंटीमीटर हो. वहीं इसकी फसल के लिए जीवांशयुक्त बलुई दोमट और शुष्क मिट्टी में बेहतर मानी जाती है. जबकि मिट्टी का पीएचमान 5.5 से 7.5 होना चाहिए.
MANURES AND FERTILIZERS खाद एवं उर्वरक
जिरेनियम एक पत्तीदार फसल है. ऐसे में इसकी पत्तियों के समुचित विकास के लिए प्रति हेक्टेयर 250 क्विंटल गोबर खाद डालना चाहिए. वहीं नाइट्रोजन 125 किलोग्राम, फास्फोरस 50 किलोग्राम और पोटाश 35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए. खेत की अंतिम जुताई के समय फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा दे देनी चाहिए. जबकि नाइट्रोजन को 25 किलो के अनुपात में 16 से 19 दिनों के अंतराल में दे
इसमें पहली
सिंचाई पौधों
की रोपाई
के बाद
करना चाहिए
जिससे पौधे
का सही
विकास हो
सकें. इसके बाद
मौसम और
मृदा के
मुताबिक 5 से 6 दिन के
अंतराल पर
सिंचाई करना
चाहिए. बता
दें कि
आवश्यकता से
अधिक सिंचाई करने
से पौधे
में जड़गलन
रोग लग
सकता है.
MAJOR SPECIES प्रमुख प्रजातियां
जिरेनियम की प्रमुख प्रजातियां अल्जीरियन, बोरबन, इजिप्सियन और सिम-पवन हैं.
मेंथा से ज्यादा मुनाफा देती है जिरेनियम की फसल, GERANIUM CROP GIVES MORE PROFIT THAN MENTHA.
मेंथा की अपेक्षा जिरेनियम में लागत कम और मुनाफा ज्यादा है। क्योंकि सिंचाई कम करनी पड़ती हैं भारत में 200 टन की तेल की खपत,
जबकि उत्पादन महज
5% है 20 हजार से 22 हजार पौधों की खेती प्रति एकड़ होती है, 8 से 10 लीटर तेल निकलता है चार महीने की फसल में 15 -20 हजार रुपए लीटर औसतन बिकता है तेल, जिससे चार महीने में एक से डेढ़ लाख रूपए तक
की बचत हो जाती है . चार हजार पौधे बचाने होते हैं बरसात में नर्सरी के लिए। हर साल भारत में
149 टन जिरेनियम की खपत होती है लेकिन इसका उत्पादन सिर्फ 5 टन ही होता है.
HOW IS GERANIUM OIL EXTRACTED ? जिरेनियम का तेल कैसे निकाला जाता है
जिरेनियम का तेल पौधे के रसीले तनों, पत्तियों
एवं फूलों से वाष्प आसवन विधि द्वारा निकाला जाता है। इसके पौधे को रोज जिरेनियम के नाम से भी जाना जाता है। जिरेनियम के तेल में गुलाब के तेल जैसी खुशबू आती है।
No comments :
Post a Comment